मेरी कोरोना यात्रा- एक आत्मकथा

Pawan Kumar Story at Nursing News

आज के इस बदलते दौर में नर्सिंग का पेशा एक जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है। कोरोना काल में नर्सों और हेल्थ वर्कर्स के लिए यह जिम्मेदारी जोश और जुनून में बदल गई है।

वर्तमान में मैं राजस्थान के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में नर्सिंग सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत हूं। यह सामान्य अवधारणा है कि नर्सिंग के पेशे में सिर्फ महिलाएं ही आती हैं परंतु ऐसा नहीं है सेवा और समर्पण की भावना से ओतप्रोत पुरुष भी इस पेशे को हृदय से अपनाते हैं।

मैंने भी पूरे जोश और जुनून के साथ सेवा और समर्पण का भाव लिए नर्सिंग में दाखिला लिया क्योंकि नर्सिंग मात्र एक पेशा नहीं है यह त्याग, समर्पण के साथ- साथ धैर्य और साहस से परिपूर्ण कार्य है। कई बार डॉक्टर की अनुपस्थिति में नर्स को रोगी का इलाज करना पड़ता है।

नर्सिंग में दाखिला लेने के पश्चात इसकी परिभाषा तथा बारीकियों को मैं समझ पाया। इस पेशे का मूल उद्देश्य मानव जाति की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित करना ही हमारा कर्तव्य है। प्रशिक्षण पूरा होते ही मेरी पदस्थापना एक अस्पताल में हुई। वहां मुझे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि मुझ में किताबी ज्ञान तो था परंतु व्यवहारिक जीवन में उसे उपयोग में लाने का अनुभव नहीं था। मरीज की सेवा का जो उत्तरदायित्व मैंने लिया था उसे भी बखूबी निभाना था। बहरहाल, दृढ़संकल्प कि अटूट डोर को थामे मैं सभी चुनौतियों को पार करता गया।

हमेशा इसी कोशिश में रहता कि मुझसे या मेरे व्यवहार से किसी को कोई शिकायत ना हो। नर्स के लिए रोगी की मनोदशा को समझना एवं उसके अनुरूप ही उससे व्यवहार करना इस पेशे की सबसे बड़ी अनिवार्यता होती है। अस्पताल में कई प्रकार के मरीज आते हैं। उनके मन में किसी ना किसी प्रकार का भय समाया रहता है। किसी को इंजेक्शन, तो किसी को डॉक्टर से, किसी को दवाओं से, तो किसी को मरने से डर लगता है। ऐसे में हमारा नम्र एवं आत्मीय व्यवहार उन्हें सुकून प्रदान करता है। हमारे सहानुभूतिपूर्ण शब्दों से तो उनके आधे रोग यूं ही भाग जाते हैं।

पर नर्स की चुनौती यहीं समाप्त नहीं होती उसे तो डॉक्टर की उम्मीदों पर भी खरा उतरना होता है अन्यथा लाख कोशिशों के बावजूद भी उन्हें कमी दिख ही जाती है और हमें उनसे डांट भी मिलती है। शुरुआत में मुझे उनकी डांट खाकर बड़ा बुरा लगता था पर अब जब मैं स्वयं वर्षों का अनुभव प्राप्त कर चुका हूं तब यह अहसास होता है कि उनकी डांट के चलते मैं बहुत कुछ सीख- समझ पाया जो आज मेरे लिए उपयोगी सिद्ध हुए। मैं हर मोर्चे पर पूरी निष्ठा और तत्परता से डटा रहा। चाहे कहीं कोई दुर्घटना घटी हो या कोई आपातकालीन रोगी हो, हर परिस्थिति में मैं मुस्तैदी से डटा रहा एवं उनकी सेवा की ।

कोरोनावायरस से हम सभी अनभिज्ञ थे। विभिन्न प्रकार के इंफेक्शन जैसे वायरल संक्रमण, फंगल संक्रमण, बैक्टीरियल संक्रमण, इत्यादि  के बारे में सुना एवं पढ़ा था। परंतु कोरोना या कोविड-19 का नाम तक नहीं सुना था।

Story Written by pawan kumar
पवन कुमार

अपने कार्यकाल में मैंने कई चुनौतीपूर्ण कार्य किए। ज्ञान और विवेक के प्रयोग के साथ-साथ डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का अनुपालन कर मरीजों को स्वस्थ् किया। परंतु कोरोना मरीज की सेवा का जो अनुभव मुझे प्राप्त हुआ उसे व्यक्त करते हुए मैं अपार गर्व एवं आनंद की अनुभूति कर रहा हूं।

जब मेरा कोरोना वायरस के मरीज से सामना हुआ तो मुझे इस बीमारी का जरा भी ज्ञान न था। टीवी पर देखता की चीन में इस बीमारी ने कहर बरपाया है जिसके कारण वहां की सरकार को लॉक डाउन करना पड़ा। कुछ ही महीनों पश्चात मार्च में नोवेल कोविड-19 ने भारत के केरल में  दस्तक दी । दिल्ली के मरकज से भी लगभग 200 कोरोना पॉजिटिव निकले और देखते ही देखते पूरे देश में इसका विस्तार होने लगा। बढ़ते हुए संक्रमण को रोकने के लिए हमारे  प्रधानमंत्री जी ने देशव्यापी बंद की घोषणा कर दी। सिर्फ अस्पताल एवं आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी प्रतिष्ठानों को बंद कर दिया गया। हमारे अस्पताल में भी स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई ताकि कोरोना मरीज  की पहचान हो सके। तब तक मेरा जिला ग्रीन जोन में था परंतु अचानक एक सुरक्षा अधिकारी कोरोना संक्रमित पाए गए एवं उनके संपर्क में आए 20 से 25 लोग भी। लोग भयाक्रांत होने लगे। कॉलोनी में सरकारी एंबुलेंस, पुलिस अधिकारी एवं डॉक्टर की गश्त लगने लगी। मैं एवं अस्पताल के अन्य सेवारत कर्मचारी भी पूरी सावधानी बरतते हुए पीपीई किट पहनकर ड्यूटी पर जाते एवं स्वयं को सोडियम हाइपोक्लोराइट से डिसइनफैक्ट करते।

तभी अचानक हमारे एक कोरोना पॉजिटिव अधिकारी की तबीयत बिगड़ गई। उनका बुखार 102-103 डिग्री के बीच ही रहता। ऑक्सीजन कंसंट्रेशन भी 90- 95 ही रहता। तभी हमारे मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उन्हें अहमदाबाद के अस्पताल  में भर्ती करने का निर्णय लिया एवं मुझे फोन कर कहा – “पवन कुमार ,आपको एक कोरोना के पेशेंट को अहमदाबाद शिफ्ट करना है क्या आप तैयार हैं?”

मैंने उत्सुकतावश हाँ कर दिया। सर के निर्देशानुसार अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए बीपीई किट पहनकर, मास्क लगाकर मरीज के साथ चलने को तैयार हो गया। परंतु एक विकट समस्या  उत्पन्न हो गई। हमारे अस्पताल के तीन एंबुलेंस ड्राइवर कोरोना का नाम सुनते ही इतने भयभीत हो गए कि मरीज को ले जाने से इंकार कर दिया। मेरे बार-बार आश्वस्त करने पर कि हम पूरी सतर्कता एवं सावधानी बरतेंगे हमें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है, वे चलने को तैयार हुए। और मेरी कोविड-19 की यात्रा आरंभ हुई। मरीज का परीक्षण कर हम सभी रवाना हुए।

मैंने कभी सोचा नहीं था कि कोरोना योद्धाओं की भूमिका आज इतनी महत्वपूर्ण हो जाएगी। डर और संशय तो था परंतु इसे दृढ़निश्चय ने, कि देश और मानवता की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं, हमारे इस कठिन सफर को आसान कर दिया। मैं बीच-बीच में मरीज का तापमान एवं ऑक्सीजन कंसंट्रेशन नाप लेता। ऑक्सीजन कंसंट्रेशन कम होने पर ऑक्सीजन दे देता और बुखार होने पर दवाई। मरीज का हाल-चाल पूछते- पूछते हम  निर्विघ्नं अहमदाबाद पहुंच गए।

शायद ही मैं जिंदगी में कभी उस दिन को भूल पाऊंगा जब 6 घंटे तक पानी का एक घूंट भी ना पिया और पीपीई किट पहनकर एक ही अवस्था में बैठा रहा। मरीज को डॉक्टर के सुपुर्द करने के बाद ही पीपीई किट उतारकर पीले थैले में फेंककर ही अपने गले को तर किया। अपने चिकित्सा अधिकारी को कुशलता की सूचना दी। वह बहुत खुश हुए एवं शाबाशी देते हुए कहा-” पवन, आपने जिंदगी में बहुत अच्छा कार्य किया है आप ऐसे ही कार्य करते रहें देश के लिए, मानव सेवा के लिए हमेशा समर्पित रहें।”

फिर हमने होटल में कमरा लिया स्नान कर, खाना खा कर आराम किया और सुबह होते ही अपने गंतव्य को लौट आए। यहां भी हमें बहुत सराहा गया। यह घटना मेरे जीवन का एक वृहद एवं अविस्मरणीय अनुभव था।

दोस्तों, इस कोरोनावायरस से पूरी दुनिया त्रस्त एवं भयभीत है। नर्सिंग के पेशे में मरीज के प्रति सेवा एवं सद्भावना वांछनीय है। हमें यह अवसर इस जीवन में प्राप्त हुआ है तो निडर होकर कर्म पथ पर अग्रसर रहें।

दोस्तों, इस घटना से मुझे यही प्रेरणा मिली है कि जीवन में हमें निराश नहीं होना चाहिए। मुझे गर्व है कि कोरोना योद्धाओं के रूप में हम लोगों की ही नहीं मानवता की भी सेवा कर रहे हैं। हमारी सेवा में सद्भावना, समर्पण और त्याग के गुणों का समावेश होना चाहिए। यही हमारे पेशे की पहचान है। एक कोरोना संक्रमित मरीज को अस्पताल में स्थानांतरित करने का जो अनुभव प्राप्त हुआ उससे मुझे अपार आनंद की अनुभूति हो रही है और मैं सदैव इनकी सेवा के लिए तत्पर हूं।

धन्यवाद ! जय हिंद, जय भारत

पवन कुमार शर्मा

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